वांछित मन्त्र चुनें

क॒था म॒हे रु॒द्रिया॑य ब्रवाम॒ कद्रा॒ये चि॑कि॒तुषे॒ भगा॑य। आप॒ ओष॑धीरु॒त नो॑ऽवन्तु॒ द्यौर्वना॑ गि॒रयो॑ वृ॒क्षके॑शाः ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kathā mahe rudriyāya bravāma kad rāye cikituṣe bhagāya | āpa oṣadhīr uta no vantu dyaur vanā girayo vṛkṣakeśāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒था। म॒हे। रु॒द्रिया॑य। ब्र॒वा॒म॒। क॒त्। रा॒ये। चि॒कि॒तुषे॑। भगा॑य। आपः॑। ओषधीः। उ॒त। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। द्यौः। वना॑। गि॒रयः॑। वृ॒क्षऽके॑शाः ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:41» मन्त्र:11 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! मनुष्य (आपः) जल (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधियाँ (वृक्षकेशाः) वृक्ष हैं केशों के समान जिनके वे पर्वत (गिरयः) मेघ (उत) और (द्यौः) सूर्य्य (वना) किरणों के सदृश (नः) हम लोगों की (अवन्तु) रक्षा करें, उनके सहाय से हम लोग (महे) बड़े (चिकितुषे) जानने योग्य और (रुद्रियाय) रुलानेवाले से प्राप्त हुए के लिये (कथा) किस प्रकार से (ब्रवाम) उपदेश देवें और (राये) धन और (भगाय) ऐश्वर्य्य के लिये (कत्) कब उपदेश देवें ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । सब मनुष्य अपने और अन्यों के रक्षण के लिये विद्वानों को मिल के प्रश्न और उत्तर से सत्य विद्याओं को प्राप्त हो और अन्यों के लिये उपदेश देकर ऐश्वर्य्य की वृद्धि कब करें, इस प्रकार नित्य उत्साह करें ॥११॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! मनुष्या आप ओषधीर्वृक्षकेशा गिरय उत द्यौर्वनेव नोऽवन्तु तत्सहायेन वयं महे चिकितुषे रुद्रियाय कथा ब्रवाम राये भगाय कद् ब्रवाम ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कथा) केन प्रकारेण (महे) महते (रुद्रियाय) रुद्रैर्लब्धाय (ब्रवाम) उपदिशेम (कत्) कदा (राये) धनाय (चिकितुषे) ज्ञातव्याय (भगाय) ऐश्वर्याय (आपः) जलानि (ओषधीः) सोमलताद्याः (उत) (नः) अस्मान् (अवन्तु) (द्यौः) सूर्य्यः (वना) किरणानीव (गिरयः) मेघाः (वृक्षकेशाः) वृक्षाः केशा इव येषां शैलानां ते ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । सर्वे मनुष्याः स्वेषामन्येषां च रक्षणाय विदुषः सङ्गत्य प्रश्नोत्तराभ्यां सत्या विद्याः प्राप्यान्येभ्य उपदिश्यैश्वर्य्यवृद्धिं कदा करिष्याम इति नित्यं प्रोत्साहेरन् ॥११॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी आपल्या व इतरांच्या रक्षणासाठी विद्वानांना भेटून प्रश्नोत्तराद्वारे सत्य विद्या प्राप्त करून इतरांना उपदेश करावा व ऐश्वर्याची वृद्धी केव्हा करता येईल हे विचारून नित्य प्रोत्साहित करावे. ॥ ११ ॥